भैंसों की मुख्य नस्लें - रामप्रसाद भारती - म्हारा हरियाणा संकलन |
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मुर्रा ...
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माटी का चूल्हा - जगबीर राठी |
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उसनै देख कै एक माँ का मन पसीज़ ग्या जब मॉटी का चूल्हा मींह कै म्हाँ भीज़ ग्या ...
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दीवाली - सत्यदेव शर्मा 'हरियाणवी' - म्हारा हरियाणा संकलन |
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पत्नी नै अपनी अक्लबन्दी की मोहर मेरे दिल पै जमा दी और दीवाली आवण तै पहलम सामान की एक लम्बी लिस्ट मेरे हाथ में थमा दी। ...
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हरिहर की धरती हरियाणा - रथुनाथ प्रियदर्शी - म्हारा हरियाणा संकलन |
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सबका प्यारा, सब तैं न्यारा, 'हरिहर ' की धरती हरियाणा । तीरथ-मेले-धरोवरों का, धरम-धाम यो हरियाणा ।। टेक ।। ...
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गोरी म्हारे गाम | कविता - जैमिनी हरियाणवी | Jaimini Hariyanavi |
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गोरी म्हारे गाम की चाली छम-छम। गलियारा भी कांप गया मर गए हम।। आगरे का घाघरा गोड्या नै भेड़ै चण्डीगढ़ की चूनरी गालां नै छेड़ै जयपुर की जूतियां का पैरां पै जुलम गलियारा भी....................। बोरला बाजूबन्द हार सज रह्या हथनी-सी चाल पै नाड़ा बज रह्या बोल रहे बिछुए, दम मारो दम गलियारा भी...................। घुँघटे नै जो थोड़ा-थोड़ा सरकावै सब तिथियाँ का चन्द्रमा नजर आवै सारा घूँघट खोल दे तो साधु मांगै रम गलियारा............................। प्रीत के नशे में चाली डट-डटकै चालती परी की पोरी पोरी मटकै एटम भरे जोबन का फोड़ गई बम गलियारा भी.......................। टाबर सगले गाम के पीछै पड़ गे देखते ही युवका के होश उड़ गे बूढ़े-बूढ़े बैठ गए भर कै चिलम गलियारा भी.....................। कूदण लाग्या मन मेरा, बिंध गया तन लिक्खण बैठ्या खूबसूरती का वरणन कोरा कागज उड़ गया, टूट गी कलम गलियारा भी कांप गया, मर गए हम। ...
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ओ मेरी महबूबा | हास्य कविता - जैमिनी हरियाणवी | Jaimini Hariyanavi |
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ओ मेरी महबूबा, महबूबा-महबूबा तू मन्नै ले डूबी, मैं तन्नै ले डूब्या।
मैं समझ गया तनै हिरणी, फिर पीछा कर लिया तेरा, हाय करड़ाई का फेरा। तू निकली मगर शेरणी, तनै खून पी लिया मेरा। ओ मेरी महबूबा महबूबा तू कर री ही-हू-हा, मैं कर बै-बू-बा।
कदे खेत में, कदे पणघट पै, तनै खूब दिखाये जलवे, गामां में हो गे बलवे। मेरे व्यर्थ में गोडे टूटे, जूतां के घिस गे तलवे। ओर मेरी महबूबा, महबूबा-महबूबा तू मेरे तै ऊबी, मैं तेरे तै ऊब्या।
कोय हो जो तनै पकड़ कै, ब्याह मेरे तै करवा दे, म्हारी जोड़ी तुरत मिला दे। मेरी गुस्सा भरी जवानी, तनै पूरा मजा चखा दे। ओ मेरी महबूबा, महबूबा-महबूबा फिर लुटै तेरी नगरी और लुटै मेरा सूबा। ओ मेरी महबूबा.........................। ...
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फेर तो मैं सूं राजी... - रोहित कुमार 'हैप्पी' | Rohit Kumar 'Happy' |
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लगा बुढेरा एक बताण - रोहित कुमार 'हैप्पी' | Rohit Kumar 'Happy' |
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लगा बुढेरा एक बताण आपस मै ना करो दुकाण पडणा-लिखणा अच्छा हो सै पर माणस की सीख पछाण लगा बुढेरा एक बताण...... ...
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मुर्रा नस्ल की भैंस | कविता - संदीप कंवल भुरटाना |
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म्हारे हरियाणे की या आन-बान-शान सै। मुर्रा नस्ल की झोटी का जग म्हं नाम सै ।। मुर्रा नस्ल की भैंस म्हारी बाल्टा दूध का ठोकै सै, म्हारे गाबरू इस दूध नै किलो-किलो झौके सै, खल-बिनौला गैल्या, खावै काजू-बदाम सै मुर्रा नस्ल की झोटी का जग म्हं नाम सै ।। ढाई लाख की झौटी बेच के कर दिया कमाल, गरीब किसान था भाइयो इब होग्या मालामाल, जमींदार खातर या भैंस, सोने की खान सैै। मुर्रा नस्ल की झोटी का जग म्हं नाम सै ।। पाणी का दूध बिकै शहर म्हं हालात माडे़ होरे सैं, समोसे बरगी छोरी सै औडे, सिगरेट बरगे छोरे सैं, घणे पतले होरे सैं वें, गोड्या म्हं उनके जान सै, मुर्रा नस्ल की झोटी का जग म्हं नाम सै ।। चलाके मोटर भैंस नुवांवा, भाई तारा कमाल सै, संदीप कंवल भुरटाणे आला, राखै देखभाल सै, म्हारी खारकी झोटी पै पूरे गाम नै मान सै। म्हारे हरियाणे की या आन-बान-शान सै। मुर्रा नस्ल की झोटी का जग म्हं नाम सै ।। ...
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मन्नै छोड कै ना जाइए | कविता - संदीप कंवल भुरटाना |
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मन्नै छोड कै ना जाइए, मेरे रजकै लाड़ लड़ाइए, अर मन्नै इसी जगां ब्याइए, जड़ै क्याकैं का दुख ना हो। छिक के रोटी खाइए, अर मन्नै भी खुवाइए,, जो चाहवै वो ए पाइए, पर मन्नै इसी जगां ना ब्याइए, जड़ै क्याकैं का सुख ना हो। माँ तेरे पै ए आस सै, पक्का ए विश्वास सै, तू ए तो मेरी खास सै, यो खास काम करके दिखाइए। माँ की मैं दुलारी सुं, ब्होत ए घणी प्यारी सुं, दिल तैं भी सारी सुं, पर कदे दिल ना दुखाइए। बाबु का काम करणा, रूपए जमा करके धरणा, इन बिना कती ना सरणा, काम चला कै दिखाइए। गरीबी तै तनै लड़-लड़कै, रातां नै खेतां म्हं पड़-पड़कै, अपणे हक खातर अड़-अड़कै, बाबु ब्होत ए धन कमाइए, पर मन्नै इसी जगां ना ब्याइए जडै क्याएं का सुख ना हो। माँ-बाबु तामै मन्नै पालण आले, मेरे तो ताम आखर तक रूखाले, वे इबे मन्नै ना सै देखे भाले, कदे होज्या काच्ची उम्र म्हं चालै, 'संदीप भुरटाणे' आले मन नै समझाइए, पर मन्नै इसी जगां ना ब्याइए, जडै क्याएं का सुख ना हो। - संदीप कंवल भुरटाना ...
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बुढ़ापा बैरी आग्या इब यो | कविता - संदीप कंवल भुरटाना |
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बुढ़ापा बैरी आग्या इब यो, रही वा जकड़ कोन्या। छाती तान के चाला करता, रही वा अकड़ कोन्या।। जवानी टेम यो खेत म्हं हाली, रहया था पूरे रंग म्हं, आंदी रोटी दोपहर कै म्हं, खाया ताई के बैठ संग म्ह, सूखा पेड़ की ढाला यो इब, रही वा लकड़ कोन्या। छाती तान के चाला करता, रही वा अकड़ कोन्या।। बेटां नै घर तै काढ दिया, लेग्ये जमीन धोखे म्हं, हरा-भरा घर उजड़गा, बिन पाणी के सोके म्हं, करड़ा घाम गेर दिया रै, रहा वा इब झड़ कोन्या छाती तान के चाला करता, रही वा अकड़ कोन्या।। आज का बख्त इतना करड़ा कर दिये लाचार तनै, बुढापा की मार इसी मारदी, कर दिये बीमार तनै, रंग रूप सब बदल दिया, रही वा धड कोन्या छाती तान के चाला करता, रही वा अकड़ कोन्या।। कह संदीप कंवल भुरटाणे आला, बूढां नै ना सताईयो रै, अपणे मात-पिता की सेवा करियो, दूध ना लज्जाईयो रै धूजण लागै हाथ मेरे इब, रही वा पकड़ कोन्या। छाती तान के चाला करता, रही वा अकड़ कोन्या।। - संदीप कंवल भुरटाना ...
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बचपन का टेम - जितेंद्र दहिया |
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बचपन का टेम याद आ गया कितने काच्चे काटया करते, आलस का कोए काम ना था भाजे भाजे हांड्या करते ।
माचिस के ताश बनाया करते कित कित त ठा के ल्याया करते मोर के चंदे ठान ताई 4 बजे उठ के भाज जाया करते ।
ठा के तख्ती टांग के बस्ता स्कूल मे हम जाया करते, स्कूल के टेम पे मीह बरस ज्या सारी हाना चाहया करते ।
गा के कविता सुनाके पहड़े पिटन त बच जाया करते, राह म एक जोहड़ पड़े था उड़े तख्ती पोत ल्याया करते ।
"राजा की रानी रुससे जा माहरी तख्ती सूखे जा" कहके फेर सुखाया करते , नयी किताब आते ए हम असपे जिलत चड़ाया करते ।
सारे साल उस कहण्या फेर ना कदे खोल लखाया करते , बोतल की खाते आइसक्रीम हम बालां के मुरमुरे खाया करते ।
घरा म सबके टीवी ना था पड़ोसिया के देखन जाया करते ज कोए हमने ना देखन दे फेर हेंडल गेर के आया करते ।
भरी दोफारी महस खोलके जोहड़ पे ले के जाया करते , बैठ के ऊपर या पकड़ पूछ ने हम भी बित्तर बड़ जाया करते ।
साँझ ने खेलते लुहकम लुहका कदे आती पाती खेलया करते, कदे चंदगी की कदे चंदरभान की डांटा न हम झेलया करते । ...
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