रिसाल जांगड़ा

रिसाल जांगड़ा का जन्म 8 जुलाई 1955 को कैथल जिला के बाहमनी वाला गाँव में हुआ था। आपने 1976 में स्नातक की। आप दूरसंचार विभाग से सेवानिवृत हैं। 

आप हरियाणवी बोली में ग़जल और कविता लिखते है और हरियाणवी के अतिरिक्त हिन्दी में भी कविता लिखते हैं। आपकी रचनाएँ हरियाणा लीडर, नवभारत टाइम्स, हरिगंधा, दैनिक ट्रिब्यून, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, संवाद, सुवेश, अक्षर खबर के अतिरिक्त विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। 

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय द्वारा 'हरियाणवी ग़ज़लकार--रिसाल जांगड़ा' विषय पर शोध पत्र। 

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मिली अंधेरे नै सै छूट | हरियाणवी ग़ज़ल

मिली अंधेरे नै सै छूट
रह्या उजाले नै यू लूट

उसका पक्कम सत्यानाश
पड़ग्यी सै जिस घर मैं फूट

मंदिर म्हं खडकावै टाल
बोल्लै सौ-सौ मण की झूट

घर का पूरा पाट्टै क्यूकर
जनमै रोज नया रंगरुट

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झूठा माणस मटक रह्या सै | हरियाणवी ग़ज़ल

झूठा माणस मटक रह्या सै,
सूली पै सच लटक रह्या सै ।

जिसनै मैहणत करी बराबर,
काम उसे का अटक रह्या सै ।

सौरण मिरग कैं पाछै देखो,
राम आज बी भटक रह्या सै ।

ऊठ बैठ सै गैरां के संग,
दिल म्हं अपणा खटक रह्या सै ।

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