हरियाणवी कविताएं

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भैंसों की मुख्य नस्लें -  रामप्रसाद भारती - म्हारा हरियाणा संकलन

मुर्रा

 
माटी का चूल्हा - जगबीर राठी

उसनै देख कै एक माँ का मन पसीज़ ग्या
जब मॉटी का चूल्हा मींह कै म्हाँ भीज़ ग्या

 
दीवाली - सत्यदेव शर्मा 'हरियाणवी' - म्हारा हरियाणा संकलन

पत्नी नै अपनी अक्लबन्दी की मोहर
मेरे दिल पै जमा दी
और दीवाली आवण तै पहलम
सामान की एक लम्बी लिस्ट
मेरे हाथ में थमा दी।

 
हरिहर की धरती हरियाणा - रथुनाथ प्रियदर्शी - म्हारा हरियाणा संकलन

सबका प्यारा, सब तैं न्यारा, 'हरिहर' की धरती हरियाणा। 
तीरथ-मेले-धरोवरों का, धरम-धाम यो हरियाणा॥टेक॥

 
गोरी म्हारे गाम | कविता - जैमिनी हरियाणवी | Jaimini Hariyanavi

गोरी म्हारे गाम की चाली छम-छम।
गलियारा भी कांप गया मर गए हम।।

 
किसान कहूं याकहूं मसीहा, पैगंबर अवतार तुझे  - दयानन्द देशवाल और धर्मपाल डूडी की कविता

किसान कहूं या कहूं मसीहा, पैगंबर अवतार ताऊ
त्याग दिया जीवन जनहित में भया परोपकार ताऊ
हरयाणा सिरसा जनपद में तेजा खेड़ा गाम सुनो
लेखराम सिहाग पिता जो असली था जाट किसान सुनो
२५ सितंबर १९१४ का ये ऐतिहासिक पैगाम सुनो
सूर्य समान ललाट लिया था, लाल हुआ सुख-धाम सुनो

 
ओ मेरी महबूबा | हास्य कविता - जैमिनी हरियाणवी | Jaimini Hariyanavi

ओ मेरी महबूबा, महबूबा-महबूबा
तू मन्नै ले डूबी, मैं तन्नै ले डूब्या।

मैं समझ गया तनै हिरणी,
फिर पीछा कर लिया तेरा, हाय करड़ाई का फेरा।
तू निकली मगर शेरणी, तनै खून पी लिया मेरा।
ओ मेरी महबूबा महबूबा
तू कर री ही-हू-हा, मैं कर बै-बू-बा।

कदे खेत में, कदे पणघट पै,
तनै खूब दिखाये जलवे, गामां में हो गे बलवे।
मेरे व्यर्थ में गोडे टूटे, जूतां के घिस गे तलवे।
ओर मेरी महबूबा, महबूबा-महबूबा
तू मेरे तै ऊबी, मैं तेरे तै ऊब्या।

कोय हो जो तनै पकड़ कै,
ब्याह मेरे तै करवा दे, म्हारी जोड़ी तुरत मिला दे।
मेरी गुस्सा भरी जवानी, तनै पूरा मजा चखा दे।
ओ मेरी महबूबा, महबूबा-महबूबा
फिर लुटै तेरी नगरी और लुटै मेरा सूबा।
ओ मेरी महबूबा.........................।

 
फेर तो मैं सूं राजी... - रोहित कुमार 'हैप्पी'

एक मेरा यार जो होग्या तीस पार
उसकी माँ नै मेरीतै बुलाया, बोल्ली-
रै आपणे यार नै समझा ले, समझा इसनै अख शादी रचा ले।

 
मुर्रा नस्ल की भैंस | कविता - संदीप कंवल भुरटाना

म्हारे हरियाणे की या आन-बान-शान सै।
मुर्रा नस्ल की झोटी का जग म्हं नाम सै ।।

मुर्रा नस्ल की भैंस म्हारी बाल्टा दूध का ठोकै सै,
म्हारे गाबरू इस दूध नै किलो-किलो झौके सै,
खल-बिनौला गैल्या, खावै काजू-बदाम सै
मुर्रा नस्ल की झोटी का जग म्हं नाम सै ।।

ढाई लाख की झौटी बेच के कर दिया कमाल,
गरीब किसान था भाइयो इब होग्या मालामाल,
जमींदार खातर या भैंस, सोने की खान सैै।
मुर्रा नस्ल की झोटी का जग म्हं नाम सै ।।

पाणी का दूध बिकै शहर म्हं हालात माडे़ होरे सैं,
समोसे बरगी छोरी सै औडे, सिगरेट बरगे छोरे सैं,
घणे पतले होरे सैं वें, गोड्या म्हं उनके जान सै,
मुर्रा नस्ल की झोटी का जग म्हं नाम सै ।।

चलाके मोटर भैंस नुवांवा, भाई तारा कमाल सै,
संदीप कंवल भुरटाणे आला, राखै देखभाल सै,
म्हारी खारकी झोटी पै पूरे गाम नै मान सै।
म्हारे हरियाणे की या आन-बान-शान सै।
मुर्रा नस्ल की झोटी का जग म्हं नाम सै ।।

 
मन्नै छोड कै ना जाइए | कविता - संदीप कंवल भुरटाना

मन्नै छोड कै ना जाइए,
मेरे रजकै लाड़ लड़ाइए,
अर मन्नै इसी जगां ब्याइए,
जड़ै क्याकैं का दुख ना हो।

छिक के रोटी खाइए,
अर मन्नै भी खुवाइए,,
जो चाहवै वो ए पाइए,
पर मन्नै इसी जगां ना ब्याइए,
जड़ै क्याकैं का सुख ना हो।

माँ तेरे पै ए आस सै,
पक्का ए विश्वास सै,
तू ए तो मेरी खास सै,
यो खास काम करके दिखाइए।

माँ की मैं दुलारी सुं,
ब्होत ए घणी प्यारी सुं,
दिल तैं भी सारी सुं,
पर कदे दिल ना दुखाइए।

बाबु का काम करणा,
रूपए जमा करके धरणा,
इन बिना कती ना सरणा,
काम चला कै दिखाइए।

गरीबी तै तनै लड़-लड़कै,
रातां नै खेतां म्हं पड़-पड़कै,
अपणे हक खातर अड़-अड़कै,
बाबु ब्होत ए धन कमाइए,
पर मन्नै इसी जगां ना ब्याइए
जडै क्याएं का सुख ना हो।

माँ-बाबु तामै मन्नै पालण आले,
मेरे तो ताम आखर तक रूखाले,
वे इबे मन्नै ना सै देखे भाले,
कदे होज्या काच्ची उम्र म्हं चालै,
'संदीप भुरटाणे' आले मन नै समझाइए,
पर मन्नै इसी जगां ना ब्याइए,
जडै क्याएं का सुख ना हो।

-संदीप कंवल भुरटाना

 
बुढ़ापा बैरी आग्या इब यो | कविता - संदीप कंवल भुरटाना

बुढ़ापा बैरी आग्या इब यो, रही वा जकड़ कोन्या।
छाती तान के चाला करता, रही वा अकड़ कोन्या।।

जवानी टेम यो खेत म्हं हाली, रहया था पूरे रंग म्हं,
आंदी रोटी दोपहर कै म्हं, खाया ताई के बैठ संग म्ह,
सूखा पेड़ की ढाला यो इब, रही वा लकड़ कोन्या।
छाती तान के चाला करता, रही वा अकड़ कोन्या।।

बेटां नै घर तै काढ दिया, लेग्ये जमीन धोखे म्हं,
हरा-भरा घर उजड़गा, बिन पाणी के सोके म्हं,
करड़ा घाम गेर दिया रै, रहा वा इब झड़ कोन्या
छाती तान के चाला करता, रही वा अकड़ कोन्या।।

आज का बख्त इतना करड़ा कर दिये लाचार तनै,
बुढापा की मार इसी मारदी, कर दिये बीमार तनै,
रंग रूप सब बदल दिया, रही वा धड कोन्या
छाती तान के चाला करता, रही वा अकड़ कोन्या।।

कह संदीप कंवल भुरटाणे आला, बूढां नै ना सताईयो रै,
अपणे मात-पिता की सेवा करियो, दूध ना लज्जाईयो रै
धूजण लागै हाथ मेरे इब, रही वा पकड़ कोन्या।
छाती तान के चाला करता, रही वा अकड़ कोन्या।।

- संदीप कंवल भुरटाना

 

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