साहित्य

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आया तीजां का त्योहार | सावन के हरियाणवी लोक-गीत - म्हारा हरियाणा संकलन

आया तीजां का त्योहार
आज मेरा बीरा आवैगा

 
मैं तो गोरी-गोरी नार | लोकगीत - म्हारा हरियाणा संकलन

मैं तो गोरी-गोरी नार, बालम काला-काला री!
मेरे जेठा की बरिये, सासड़ के खाया था री?

 
ऊंची एडी बूंट बिलाती | लोकगीत  - म्हारा हरियाणा संकलन

ऊंची एडी बूंट बिलाती पहरन खात्तर ल्यादे,
जै तेरे बसकी बात नहीं तो म्हारे घरां खंदा दे।

 
गूठी  |  हरियाणवी कहानी  - आशा खत्री 'लता' | Asha Khatri 'Lata'

कुंतल नै पैहरण का बहोत शौक था। टूमा तैं लगाव तो लुगाइयां नै सदा तैं ए रहा सै। अर उनमैं भी गूठी खास मन भावै, क्यूंके परिणयसूत्र में बंधण की रस्मा की शुरुआत ए गूठी तैं होवे सै। यो ए कारण सै अक गूठी के साथ एक भावनात्मक रिश्ता बण ज्या सै। कुंतल की गैलां भी न्युएं हुआ। ब्याह नै साल भर हो ग्या था फेर भी वा अपनी सगाई आली गूठी सारी हाणां आंगली मैं पहरे रहती। चूल्हा- चौका, खेत-क्यार हर जगह उसनै जाणा होता। गोसे पाथण तैं ले कै भैसां तैं चारा डालण ताहीं बल्कि खेतां मैं तै लयाण ताहीं के सारे काम उसनै करणै पड़ै थे। यो ए कारण था अक उसकी सास ने उसतैं कई बार समझाया भी के छोटी सी गूठी, आंगली तैं कढक़ै कितै पड़ ज्यागी। पर कुंतल सास की बात नै काना पर कै तार देती। बस कदे- कदाए उसनै चून ओसणणां पड़ता तै उतार कै एक ओड़ा नै धर देती और हाथ धोते एं फेर पहर लेती।

 
गाँधी पर हरियाणवी लोकगीत - म्हारा हरियाणा संकलन

हरियाणवी लोक मानस पर पड़े राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के प्रभाव की झलक इस प्रदेश के लोक गीतों में पूरी तरह मिलती है जो यहां के भोले-भाले बच्चों ने गाए हैं और जिन के माध्यम से इस प्रदेश की नारियों ने पूज्य बापू के प्रति अपनी भावनाएं अभिव्यक्त की हैं। बच्चों द्वारा गाए जाने वाले लोक गीतों में भले तुकबदियां ही हैं परंतु इन तुकबंदियों में भी बड़े सीधे सादे सरल ढंग से बापू के विभिन्न कार्यों की विशद चर्चा हुई है। इन गीतों में महात्मा गांधी के सभी राजनैतिक तथा समाज सुधार संबंधी कार्य क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व मिला है। गांधी जी के जलसे में शामिल होने की नारियों उत्सुकता से नारियों की जागरूकता का संकेत भी मिलता है। हरियाणवी लोक गीतों द्वारा प्रस्तुत किए गए बापू जी की मृत्यु के करुण दृश्य से सभी की आखें सजल हो उठती हैं। एक गीत की निम्न पंक्तियां अपनी अमिट छाप छोड़ देती है: 

काचा कुणबा छोड़ के बाब्बू सुरग लोक में सोगे।
भारत के सब नर नारी अब बिना बाप के होगे॥

 
मेहर सिंह की रागणियां - मेहर सिंह

मेहर सिंह की रागणियां हरियाणा में बहुत लोकप्रिय हैं और देहात में बड़े चाव से सुनी जाती हैं। एक फ़ौजी होने के कारण उनकी रचनाओं में फ़ौज के जीवन, युद्ध इत्यादि का उल्लेख स्वभाविक है। 

 
कलियुग | रागणी - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand

समद ऋषि जी ज्ञानी हो-गे जिसनै वेद विचारा।
वेदव्यास जी कळूकाल* का हाल लिखण लागे सारा ॥टेक॥

 
तेरा बड़ा भाई तेरे भरोसे करग्या  - पं माँगेराम

तेरा बड़ा भाई तेरे भरोसे करग्या,
तनै वचन भरे थे, तू इसा तावला फिरग्या !!टेक!!

 
नांनी नांनी बूंदियां | सावन के हरियाणवी लोकगीत - म्हारा हरियाणा संकलन

नांनी नांनी बूंदियां हे सावन का मेरा झूलणा
एक झूला डाला मैंने बाबल के राज में
                       बाबल के राज में

 
नांनी नांनी बूंदियां मीयां | सावन के हरियाणवी लोकगीत - म्हारा हरियाणा संकलन

नांनी नांनी बूंदियां मीयां बरसता हे जी
हां जी काहे चारूं दिसां पड़ेगी फुवार
हां जी काहे सामण आया सुगड़ सुहावणा
संग की सहेली मां मेरी झूलती जी
हमने झूलण का हे मां मेरी चाव जी
हां जी काहे सामण आया सुगड़ सुहावणा
सखी सहेली मां मेरी भाजगी जी
हां जी काहे हम तै तो भाज्या ना जाय
पग की है पायल उलझी दूब में जी
नांनी नांनी बूंदियां मीयां बरसता जी
हां जी काहे चारूं पास्यां पड़ेगी फुवार

 
सुणों कहाणी हरियाणे की - पं माँगेराम

हरियाणे की कहाणी सुणल्यो दो सौ साल की।
कई किस्म की हवा चालगी नई चाल की ।

 
परीक्षित और कलियुग | रागणी - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand

कहते हैं कि युधिष्ठिर के पोते परीक्षित के बाद कलियुग आरंभ हो गया था। प्रस्तुत है परीक्षित और कलियुग की बातचीत (दादा लखमीचंद की वाणी से)

 
या दुनिया - रोहित कुमार 'हैप्पी'

एक ब एक बूढ़ा सा माणस अर उसका छोरा दूसरे गाम जाण लागरे थे। सवारी वास्तै एक खच्चर ह था। दोनो खच्चर पै सवार होकै चाल पड़े। रास्ते मैं कुछ लोग देख कै बोल्ले, "रै माड़ा खच्चर अर दो-दो सवारी। हे राम, जानवर की जान की तो कोई कीमत नहीं समझदे लोग।"

 
कच्चे नीम्ब की निम्बोली | सावन के हरियाणवी लोकगीत - म्हारा हरियाणा संकलन

कच्चे नीम्ब की निम्बोली सामण कद कद आवै रे
जीओ रे मेरी मां का जाया गाडे भर भर ल्यावै रे
बाबा दूर मत ब्याहियो दादी नहीं बुलाने की
बाब्बू दूर मत ब्याहियो अम्मा नहीं बुलाने की
मौसा दूर मत ब्याहियो मौसी नहीं बुलाने की
फूफा दूर मत ब्याहियो बूआ नहीं बुलाने की
भैया दूर मत ब्याहियो भाभी नहीं बुलाने की
काच्चे नीम्ब की निम्बोली सामणया कद आवै रे
जीओ रे मेरी मां का जाया गाडे भर भय ल्यावै रे

 
जन्म-मरण | रागणी - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand

लाख-चौरासी खतम हुई बीत कल्प-युग चार गए।
नाक में दम आ लिया, हम मरते-मरते हार गए॥टेक॥

 
लेणा एक ना देणे दो - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand

लेणा एक ना देणे दो, दिलदार बणे हांडै सैं।
मन म्हं घुण्डी रहै पाप की, यार बणें हांडै सै॥
नई-नई यारी लगै प्यारी, दोष पाछले ढक ले।
मतलब खात्यर यार बणैं, फेर थोड़े दिन म्हं छिक ले।
नहीं जाणते फर्ज यार का, पाप कर्म म्हं पक ले।
कै तै खा ज्यां माल यार का, या बहू बाहण नै तक ले।
करै बहाना यारी का, इसे यार बणें हांडै सैं॥

 
देखे मर्द नकारे हों सैं - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand

देखे मर्द नकारे हों सैं गरज-गरज के प्यारे हों सैं।
भीड़ पड़ी म्हं न्यारे हों सैं तज के दीन ईमान नैं॥

 
हो पिया भीड़ पड़ी मै | हरियाणवी रागणी  - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand

हो पिया भीड़ पड़ी मैं नार मर्द की, खास दवाई हो,
मेल मैं टोटा के हो सै।

 
एक चिड़िया के दो बच्चे थे | हरियाणवी रागणी  - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand

एक चिड़िया के दो बच्चे थे, वे दूजी चीड़ी ने मार दिए!
मैं मर गयी तो मेरे बच्चों ने मत ना दुःख भरतार दिए!!

 
मत चालै मेरी गेल | हरियाणवी रागणी  - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand

मत चालै मेरी गेल तनै घरबार चाहिएगा 
मैं निर्धन कंगाल तनैं परिवार चाहिएगा

 
हरियाणवी कड़के - हरियाणवी जन-माणस

खाओ पीओ, छिको मत
चालो फिरो, थक्को मत
बोलो चाल्लो, बक्को मत
देखो भालो, ताक्को मत।

 
झूलण आळी | लोकगीत - म्हारा हरियाणा संकलन

झूलण आळी बोल बता के बोलण का टोटा
झूलण खातर घाल्या करैं सैं पींग सामण में
मीठी बोली तेरी सै जणो कोयल जामण में
तेरे दामण में लिसकार उठै चमक रिहा घोटा
झूलण आळी बोल बता के बोलण का टोटा

 
जीवन की रेल  - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand

हो-ग्या इंजन फेल चालण तै, घंटे बंद, घडी रहगी ।
छोड़ ड्राइवर चल्या गया, टेशन पै रेल खड़ी रह-गी ॥टेक॥

 
फागुण के हरियाणवी लोक गीत | Fagun Geet  - म्हारा हरियाणा संकलन

यहाँ फागुण से संबंधित लोकगीत संकलित किए गए हैं जो फागुण, फाग व होली के अवसर पर गाए जाते हैं। यदि आपके पास भी कुछ गीत उपलब्ध हों तो अवश्य 'म्हारा-हरियाणा' से साझा करें।

 
गया बख्त आवै कोन्या - संदीप कंवल भुरटाना

गया बख्त आवै कोन्या, ना रहरे माणस श्याणे
पहल्म बरगा प्यार रहया ना, इब होरे दूर ठिकाणे॥

 
मेरी कुर्ती | रागनी - नरेश कुमार शर्मा

हे मेरी कुर्ती का रंग लाल मेरा बालम देख लूभावै सै। |टेक|
हे सै मेरा जोबन याणा।
मेरे संग होरया धिंगताणा।
उमरिया हो रही सोलह साल मेरा बालम देख लूभावै सै।

मैं जब ओड पहर कै चालु।
मै बडबेरी ज्यु हालु।
हे मन भीड़ी हो ज्या गाल मेरा बालम देख लूभावै सै।

हे मेरा रूप निखरता आवै।
जवानी दूणा जोर दिखावै।
हे मेरी बदल गई है चाल मेरा बालम देख लूभावै सै।

हे नरेश इश्क में भरग्या।
वो नजर मेरे पै धरग्या।
हे वो हुआ पड़ा सै घायल मेरा बालम देख लूभावै सै।

 

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