Important Links
साहित्य
यहाँ हरियाणवी लोक साहित्य से संबंधित सामग्री रहेगी व आप हरियाणवी लोक साहित्य पढ़ पाएंगे। हरियाणवी लोक-साहित्य नि:संदेह अत्याधिक समृद्ध लोक-साहित्यों में से एक है किंतु विलुप्त होते लोक-साहित्य को सुरक्षित रख पाना वर्तमान के लिए एक अहम् मुद्दा है। हरियाणवी लोक-साहित्य में ऐसी अनेक विधाएं हैं जिन्हें सहेज कर रखने की आवश्यकता है। लोक-साहित्य पन्ना इन्हीं लुप्तप्राय: हरियाणवी विधाओं को जीवंत बनाए रखने का प्रयास मात्र है। यदि आप हरियाणवी लेखक, कवि, पत्रकार, साहित्यकार या हरियाणवी में रुचि रखने वाले पाठक हैं तो यह पन्ना आपके लिए ही बनाया गया है। कृपया हरियाणवी लोक-साहित्य से संबंधित सामग्री भेज कर इस साहित्यिक-यज्ञ में योगदान दें। आप हरियाणवी रागनियां, लोकोक्तियाँ, ग्रामोक्तियाँ, लोकगीत, लोकगाथा, लोककथा एवं कथोक्ति, आल्हा,भजन सांग और लेख भेज सकते हैं।Article Under This Catagory
आया तीजां का त्योहार | सावन के हरियाणवी लोक-गीत - म्हारा हरियाणा संकलन |
आया तीजां का त्योहार |
more... |
मैं तो गोरी-गोरी नार | लोकगीत - म्हारा हरियाणा संकलन |
मैं तो गोरी-गोरी नार, बालम काला-काला री! |
more... |
ऊंची एडी बूंट बिलाती | लोकगीत - म्हारा हरियाणा संकलन |
ऊंची एडी बूंट बिलाती पहरन खात्तर ल्यादे, |
more... |
गूठी | हरियाणवी कहानी - आशा खत्री 'लता' | Asha Khatri 'Lata' |
कुंतल नै पैहरण का बहोत शौक था। टूमा तैं लगाव तो लुगाइयां नै सदा तैं ए रहा सै। अर उनमैं भी गूठी खास मन भावै, क्यूंके परिणयसूत्र में बंधण की रस्मा की शुरुआत ए गूठी तैं होवे सै। यो ए कारण सै अक गूठी के साथ एक भावनात्मक रिश्ता बण ज्या सै। कुंतल की गैलां भी न्युएं हुआ। ब्याह नै साल भर हो ग्या था फेर भी वा अपनी सगाई आली गूठी सारी हाणां आंगली मैं पहरे रहती। चूल्हा- चौका, खेत-क्यार हर जगह उसनै जाणा होता। गोसे पाथण तैं ले कै भैसां तैं चारा डालण ताहीं बल्कि खेतां मैं तै लयाण ताहीं के सारे काम उसनै करणै पड़ै थे। यो ए कारण था अक उसकी सास ने उसतैं कई बार समझाया भी के छोटी सी गूठी, आंगली तैं कढक़ै कितै पड़ ज्यागी। पर कुंतल सास की बात नै काना पर कै तार देती। बस कदे- कदाए उसनै चून ओसणणां पड़ता तै उतार कै एक ओड़ा नै धर देती और हाथ धोते एं फेर पहर लेती। |
more... |
गाँधी पर हरियाणवी लोकगीत - म्हारा हरियाणा संकलन |
हरियाणवी लोक मानस पर पड़े राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के प्रभाव की झलक इस प्रदेश के लोक गीतों में पूरी तरह मिलती है जो यहां के भोले-भाले बच्चों ने गाए हैं और जिन के माध्यम से इस प्रदेश की नारियों ने पूज्य बापू के प्रति अपनी भावनाएं अभिव्यक्त की हैं। बच्चों द्वारा गाए जाने वाले लोक गीतों में भले तुकबदियां ही हैं परंतु इन तुकबंदियों में भी बड़े सीधे सादे सरल ढंग से बापू के विभिन्न कार्यों की विशद चर्चा हुई है। इन गीतों में महात्मा गांधी के सभी राजनैतिक तथा समाज सुधार संबंधी कार्य क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व मिला है। गांधी जी के जलसे में शामिल होने की नारियों उत्सुकता से नारियों की जागरूकता का संकेत भी मिलता है। हरियाणवी लोक गीतों द्वारा प्रस्तुत किए गए बापू जी की मृत्यु के करुण दृश्य से सभी की आखें सजल हो उठती हैं। एक गीत की निम्न पंक्तियां अपनी अमिट छाप छोड़ देती है: |
more... |
मेहर सिंह की रागणियां - मेहर सिंह |
मेहर सिंह की रागणियां हरियाणा में बहुत लोकप्रिय हैं और देहात में बड़े चाव से सुनी जाती हैं। एक फ़ौजी होने के कारण उनकी रचनाओं में फ़ौज के जीवन, युद्ध इत्यादि का उल्लेख स्वभाविक है। |
more... |
कलियुग | रागणी - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand |
समद ऋषि जी ज्ञानी हो-गे जिसनै वेद विचारा। |
more... |
तेरा बड़ा भाई तेरे भरोसे करग्या - पं माँगेराम |
तेरा बड़ा भाई तेरे भरोसे करग्या, |
more... |
नांनी नांनी बूंदियां | सावन के हरियाणवी लोकगीत - म्हारा हरियाणा संकलन |
नांनी नांनी बूंदियां हे सावन का मेरा झूलणा |
more... |
नांनी नांनी बूंदियां मीयां | सावन के हरियाणवी लोकगीत - म्हारा हरियाणा संकलन |
नांनी नांनी बूंदियां मीयां बरसता हे जी |
more... |
सुणों कहाणी हरियाणे की - पं माँगेराम |
हरियाणे की कहाणी सुणल्यो दो सौ साल की। |
more... |
परीक्षित और कलियुग | रागणी - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand |
कहते हैं कि युधिष्ठिर के पोते परीक्षित के बाद कलियुग आरंभ हो गया था। प्रस्तुत है परीक्षित और कलियुग की बातचीत (दादा लखमीचंद की वाणी से) |
more... |
या दुनिया - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
एक ब एक बूढ़ा सा माणस अर उसका छोरा दूसरे गाम जाण लागरे थे। सवारी वास्तै एक खच्चर ह था। दोनो खच्चर पै सवार होकै चाल पड़े। रास्ते मैं कुछ लोग देख कै बोल्ले, "रै माड़ा खच्चर अर दो-दो सवारी। हे राम, जानवर की जान की तो कोई कीमत नहीं समझदे लोग।" |
more... |
कच्चे नीम्ब की निम्बोली | सावन के हरियाणवी लोकगीत - म्हारा हरियाणा संकलन |
कच्चे नीम्ब की निम्बोली सामण कद कद आवै रे |
more... |
जन्म-मरण | रागणी - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand |
लाख-चौरासी खतम हुई बीत कल्प-युग चार गए। |
more... |
लेणा एक ना देणे दो - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand |
लेणा एक ना देणे दो, दिलदार बणे हांडै सैं। |
more... |
देखे मर्द नकारे हों सैं - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand |
देखे मर्द नकारे हों सैं गरज-गरज के प्यारे हों सैं। |
more... |
हो पिया भीड़ पड़ी मै | हरियाणवी रागणी - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand |
हो पिया भीड़ पड़ी मैं नार मर्द की, खास दवाई हो, |
more... |
एक चिड़िया के दो बच्चे थे | हरियाणवी रागणी - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand |
एक चिड़िया के दो बच्चे थे, वे दूजी चीड़ी ने मार दिए! |
more... |
मत चालै मेरी गेल | हरियाणवी रागणी - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand |
मत चालै मेरी गेल तनै घरबार चाहिएगा |
more... |
हरियाणवी कड़के - हरियाणवी जन-माणस |
खाओ पीओ, छिको मत |
more... |
झूलण आळी | लोकगीत - म्हारा हरियाणा संकलन |
झूलण आळी बोल बता के बोलण का टोटा |
more... |
जीवन की रेल - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand |
हो-ग्या इंजन फेल चालण तै, घंटे बंद, घडी रहगी । |
more... |
फागुण के हरियाणवी लोक गीत | Fagun Geet - म्हारा हरियाणा संकलन |
यहाँ फागुण से संबंधित लोकगीत संकलित किए गए हैं जो फागुण, फाग व होली के अवसर पर गाए जाते हैं। यदि आपके पास भी कुछ गीत उपलब्ध हों तो अवश्य 'म्हारा-हरियाणा' से साझा करें। |
more... |
गया बख्त आवै कोन्या - संदीप कंवल भुरटाना |
गया बख्त आवै कोन्या, ना रहरे माणस श्याणे |
more... |
मेरी कुर्ती | रागनी - नरेश कुमार शर्मा |
हे मेरी कुर्ती का रंग लाल मेरा बालम देख लूभावै सै। |टेक| |
more... |