हरियाणवी भजन

हरियाणवी भजन बहुत पुरानी विधा नहीं कही जा सकती। भारत में पश्चिम के भौतिकवादी दृष्टिकोण के आगमन से हमारी संस्कृति को बचाए रखने के लिए रचनाकारों ने इन भजनो की रचना की। अधिकतर भजनो में अध्यात्मिक मूल्यों की महत्ता पर बल दिया गया है। इन भजनो में अपने पूर्वजों की यशोगाथा प्रधान है और ईश्वर की लीला का यशोगान किया जाता रहा है।

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दीवाळी - कवि नरसिंह

कात्तिक बदी अमावस थी और दिन था खास दीवाळी का-
आँख्याँ कै माँह आँसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का॥

 
बता मेरे यार सुदामा रै - म्हारा हरियाणा संकलन

बता मेरे यार सुदामा रै, भाई घणे दिनां मै आया - 2
बाळक था रै जब आया करता, रोज़ खेल कै जाया करता - 2

 
मन डटदा कोन्या - म्हारा हरियाणा संकलन

मन डटदा कोन्या डाटूं सूं रोज भतेरा
एक मन कहै मैं साइकल तो घुमाया करूं
एक मन कहै मोटर कार मैं चलाया करूं
रै मन डटदा कोन्या डाटूं सूं रोज भतेरा
एक मन कहै मेरे पांच सात तो छोहरे हों
एक मन कहै सोना चांदी भी भतेरे हों
मन डटदा कोन्या डाटूं सूं रोज भतेरा

 

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