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हरियाणवी रागनियां
रागनी एक कौरवी लोकगीत विधा है जो आज स्वतंत्र लोकगीत विधा के रूप में स्थापित हो चुकी है। हरियाणा में मनोरंजन के लिए गाए जाने वाले गीतों में रागनी प्रमुख है। यहां रागनी एक स्वतंत्र व लोकप्रिय लोकगीत विधा के रूप में प्रसिद्ध है। हरियाणा में रागनी की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं व सामान्य मनोरंजन हेतु रागनियां अहम् हैं।Article Under This Catagory
कलियुग | रागणी - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand |
समद ऋषि जी ज्ञानी हो-गे जिसनै वेद विचारा। |
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मेहर सिंह की रागणियां - मेहर सिंह |
मेहर सिंह की रागणियां हरियाणा में बहुत लोकप्रिय हैं और देहात में बड़े चाव से सुनी जाती हैं। एक फ़ौजी होने के कारण उनकी रचनाओं में फ़ौज के जीवन, युद्ध इत्यादि का उल्लेख स्वभाविक है। |
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तेरा बड़ा भाई तेरे भरोसे करग्या - पं माँगेराम |
तेरा बड़ा भाई तेरे भरोसे करग्या, |
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सुणों कहाणी हरियाणे की - पं माँगेराम |
हरियाणे की कहाणी सुणल्यो दो सौ साल की। |
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परीक्षित और कलियुग | रागणी - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand |
कहते हैं कि युधिष्ठिर के पोते परीक्षित के बाद कलियुग आरंभ हो गया था। प्रस्तुत है परीक्षित और कलियुग की बातचीत (दादा लखमीचंद की वाणी से) |
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जन्म-मरण | रागणी - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand |
लाख-चौरासी खतम हुई बीत कल्प-युग चार गए। |
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लेणा एक ना देणे दो - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand |
लेणा एक ना देणे दो, दिलदार बणे हांडै सैं। |
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देखे मर्द नकारे हों सैं - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand |
देखे मर्द नकारे हों सैं गरज-गरज के प्यारे हों सैं। |
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हो पिया भीड़ पड़ी मै | हरियाणवी रागणी - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand |
हो पिया भीड़ पड़ी मैं नार मर्द की, खास दवाई हो, |
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एक चिड़िया के दो बच्चे थे | हरियाणवी रागणी - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand |
एक चिड़िया के दो बच्चे थे, वे दूजी चीड़ी ने मार दिए! |
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मत चालै मेरी गेल | हरियाणवी रागणी - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand |
मत चालै मेरी गेल तनै घरबार चाहिएगा |
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हरियाणवी कड़के - हरियाणवी जन-माणस |
खाओ पीओ, छिको मत |
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जीवन की रेल - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand |
हो-ग्या इंजन फेल चालण तै, घंटे बंद, घडी रहगी । |
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गया बख्त आवै कोन्या - संदीप कंवल भुरटाना |
गया बख्त आवै कोन्या, ना रहरे माणस श्याणे |
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मेरी कुर्ती | रागनी - नरेश कुमार शर्मा |
हे मेरी कुर्ती का रंग लाल मेरा बालम देख लूभावै सै। |टेक| |
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