पं माँगेराम

पंडित माँगेराम का जन्म सोनीपत जिले के सुसाणा गाँव में 5 अप्रैल 1905 को हुआ था। इनके पिता का नाम अमर सिंह था। इनका अधिकांश समय सोनीपत के पाणची गाँव में व्यतीत हुआ था।

पंडित माँगेराम हरियाणा के उच्च कोटि के सांगी, गायक व रचनाकार रहे हैं। हरियाणा के लोक साहित्य में इनका नाम बहुत महत्ता रखता है। हरियाणवी सांग परंपरा में माँगेराम का विशिष्ट स्थान है। हरियाणा विशेषत: देहात में इनका नाम बड़े आदर से लिया जाता है।

पंडित माँगेराम ड्राइवर थे, परंतु जहाँ भी पंडित लखमीचंद के सांग होते, ये वहाँ पहुँच जाते थे। उनसे प्रेरणा लेकर इन्होंने ड्राइवरी छोड़ दी और अपनी सांग मंडली बना ली। उन्होंने सांगों में स्त्री पात्रों के लहंगे के स्थान पर 'सलवार' का प्रचलन आरंभ किया था। माँगेराम की मृत्यु के संबंध में प्रसिद्ध है कि इन्होंने गंगा जी के किनारे प्राण त्यागे। इससे पहले उन्होंने गंगा जी में समा जाने की बात अपनी एक कविता में कही थी।

निधन
16 नवम्बर, 1967 को ये गढ़गंगा स्नान के लिए गए थे, वहीं इन्होंने सहसा अपने प्राण त्याग दिए। इस प्रकार अपनी कल्पना को साकार रूप दे दिया। 

रचनाएँ
इनकी प्रमुख रचनाएँ जयमल फत्ता, कृष्ण जन्म, नल-दमयंती, शकुंतला दुष्यंत, भरथरी, राजा अम्ब, ध्रुव भक्त, अमरसिंह राठौर, छैल बाला, अजीतसिंह राजबाला, खांडेराव परी आदि है। 

आइए, पंडित मांगेराम की रचनाओं का रस्वादन करें!

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पं मांगेराम की रागणियां

पं मांगे राम का नाम हरियाणवी लोक साहित्य में एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर है। पं लखमीचंद के इस शिष्य की रागणियां हरियाणा भर में बड़े चाव से आज भी गाई जाती हैं।

यदि आप के पास पं मांगे राम से संबंधित सामग्री हो तो कृपया हमें अवश्य भेजें। पं मांगे राम की कुछ प्रसिद्ध रागनियां यहां दी जा रही हैं। आशा है पाठको को रोचक लगेंगी।

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