म्हारा हरियाणा : हरियाणवी लोक साहित्य, संस्कृति एवं भाषा
देस के हो रे थे बारां बाट।बणिया, बाह्मण अर कोई जाट॥
अर था कोई अछूत कहलाया।बाब्बू का दिल था भर आया॥
बाब्बू नै मिटाई छूआछात।सब सैं भारत माँ के पूत॥
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