एक बख़त था...

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 सत्यवीर नाहड़िया

एक बख़त था, गाम नै माणस, राम बताया करते।
आपस म्हं था मेलजोल, सुख-दुख बतलाया करते।
माड़ी करता कार कोई तो, सब धमकाया करते।
ब्याह-ठीच्चे अर खेत-क्यार म्हं, हाथ बटाया करते।
इब बैरी होग्ये भाई-भाई, रोवै न्यूं महतारी।
पहलम आले गाम रहे ना, बात सुणो या म्हारी॥

एक बख़त था साझे म्हं सब, मौज उड़ाया करते।
सुख-दुख के म्हां साझी रहकै, हाथ बटाया करते।
घर-कुणबे का एक्का पहलम, न्यूं समझाया करते।
खेत-क्यार अर ब्याह्-ठीच्चे पै आग्गै पाया करते।
रल़मिल कै वै गाया करते-रंग चाव के गीत दिखे।
इब कुणबे पाट्ये न्यारे-सारे, नहीं रह्यी वै रीत दिखे॥

एक बख़त म्हारी नानी-दादी, कथा सुणाया करती।
बात के बत्तके कडक़े कुत्तके ठोक जंचाया करती।
होंकारे भरते बालक-चीलक, ग्यान बढ़ाया करती।
संस्कार की घुट्टी नित बातां म्हं प्याया करती। 
कहाणी म्हं सार सिखाया करती-ला छाती कै टाब्बर।
इब नानी-दादी बण बैठ्ये ये टीवी अर कम्यूटर॥

एक बख़त था पीपल नै सब, सीस नवाया करते।
तिरवेणी म्हं बड़-पीपल अर नीम लगाया करते।
ऊठ सबेरै नित पीपल़ म्हं नीर चढ़ाया करते।
हो पीपल-पूज्जा, लिछमी-पूज्जा बड़े बताया करते।
गीता-ज्ञान सुणाया करते-जब पीपल़ बणे मुरारी।
इब कलयुग म्हं पीपल़ पै भी चाल्लण लागी आरी॥

-सत्यवीर नाहड़िया
[Haryanvi Geet by Satyavir Naharia]

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