एक बख़त था, गाम नै माणस, राम बताया करते। आपस म्हं था मेलजोल, सुख-दुख बतलाया करते। माड़ी करता कार कोई तो, सब धमकाया करते। ब्याह-ठीच्चे अर खेत-क्यार म्हं, हाथ बटाया करते। इब बैरी होग्ये भाई-भाई, रोवै न्यूं महतारी। पहलम आले गाम रहे ना, बात सुणो या म्हारी॥
एक बख़त था साझे म्हं सब, मौज उड़ाया करते। सुख-दुख के म्हां साझी रहकै, हाथ बटाया करते। घर-कुणबे का एक्का पहलम, न्यूं समझाया करते। खेत-क्यार अर ब्याह्-ठीच्चे पै आग्गै पाया करते। रल़मिल कै वै गाया करते-रंग चाव के गीत दिखे। इब कुणबे पाट्ये न्यारे-सारे, नहीं रह्यी वै रीत दिखे॥
एक बख़त म्हारी नानी-दादी, कथा सुणाया करती। बात के बत्तके कडक़े कुत्तके ठोक जंचाया करती। होंकारे भरते बालक-चीलक, ग्यान बढ़ाया करती। संस्कार की घुट्टी नित बातां म्हं प्याया करती। कहाणी म्हं सार सिखाया करती-ला छाती कै टाब्बर। इब नानी-दादी बण बैठ्ये ये टीवी अर कम्यूटर॥
एक बख़त था पीपल नै सब, सीस नवाया करते। तिरवेणी म्हं बड़-पीपल अर नीम लगाया करते। ऊठ सबेरै नित पीपल़ म्हं नीर चढ़ाया करते। हो पीपल-पूज्जा, लिछमी-पूज्जा बड़े बताया करते। गीता-ज्ञान सुणाया करते-जब पीपल़ बणे मुरारी। इब कलयुग म्हं पीपल़ पै भी चाल्लण लागी आरी॥
-सत्यवीर नाहड़िया [Haryanvi Geet by Satyavir Naharia] |