हो पिया भीड़ पड़ी मैं नार मर्द की, खास दवाई हो, मेल मैं टोटा के हो सै।
टोटे नफे आंवते जाते, सदा नहीं एकसार कर्मफळ पाते उननै ना चाहते सिंगार जिनके, गात समाई हो, मर्द का खोटा के हो सै।
परण पै धड़ चाहिए ना सिर चाहिए, ऊत नै तै घर चाहिए ना जर चाहिए बीर नै तै बर चाहिए होशियार, मेरी नणदी के भाई हो अकलमंद छोटा के हो सै।
पतिव्रता बीच स्वर्ग झुलादे, दुख बिपता की फांस खुलादे भुलादे दरी दुत्तई पिलंग निवार, तकिया सोड़ रजाई हो किनारी घोटा के हो सै।
लखमीचन्द कहै मेरे रुख की, सजन वैं हों सैं लुगाई टुक की जो दुख-सुख की दो च्यार, पति नै ना हँस बतलाई हों तै महरम लोटा के हो सै।
--पं लखमीचंद |