मनै बावली मनचली, कहवैं सारे लोग। प्रेम प्रीत का लग गया, जिब तै मन म्हँ रोग॥
बीर मरद में हो रह्यी, बस एकै तकरार। मालिक घर का कूण सै, जिब तनखा इकसार॥
सहना जै सै सीखणा, तू औरत तै सीख। और कितै तै मिलै नां, इस विद्या की भीख॥
औरत पाछै कट मरा, दुनिया दीन जहान। समझ सका ना फेर भी, 'मोनां' की मुस्कान॥
वीर तपस्वी देवता, अर सारे भगवान। औरत पंचम वेद सै, अर सातमा पुरान॥
लख-लिख सब ग्यानी मरे, औरत नरकां द्वार। फिर भी पाछै हांडते, सब टपकाते लार॥
कनकलता सी कामनी, जब दे यूँ मुस्काय। सिट्टी पिट्टी गुम करै, मुख तैं निकले हाय॥
डेढ़ हाथ का घूँघटा, भीतर तीखे तीर। बड़े-बड़े पाणी भरै, न्यूँ कहलावै बीर॥
बीर कदै न चाहती, धन दौलत अर शान। प्यासी सै वह प्रेम की, मूरख मरद पिछाण॥
औरत भूखी प्यार की, मरद समझ ना पाय। बैठ्या बस परदेश तैं, मनिआडर भिजवाय॥
औरत घर की लाज सै, औरत जीवन सार। बिन औरत के दोस्तो, नर कितणा लाचार॥
बड़े-बड़े जो सूरमा, युद्धबीर कहलायँ। पड़ै सामणा नार का, देवैं पूँछ हिलायँ॥
--डॉ श्याम सखा श्याम
Haryanvi Dohe by Dr Shyam Sakha 'Shyama' |