गोरी म्हारे गाम | कविता

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 जैमिनी हरियाणवी | Jaimini Hariyanavi

गोरी म्हारे गाम की चाली छम-छम।
गलियारा भी कांप गया मर गए हम।।

आगरे का घाघरा गोड्या नै भेड़ै
चण्डीगढ़ की चूनरी गालां नै छेड़ै
जयपुर की जूतियां का पैरां पै जुलम
गलियारा भी....................।

बोरला बाजूबन्द हार सज रह्या
हथनी-सी चाल पै नाड़ा बज रह्या
बोल रहे बिछुए, दम मारो दम
गलियारा भी...................।

घुँघटे नै जो थोड़ा-थोड़ा सरकावै
गोरी म्हारे गाम की चाली छम-छम।
गलियारा भी कांप गया मर गए हम।।

आगरे का घाघरा गोड्या नै भेड़ै
चण्डीगढ़ की चूनरी गालां नै छेड़ै
जयपुर की जूतियां का पैरां पै जुलम
गलियारा भी....................।

बोरला बाजूबन्द हार सज रह्या
हथनी-सी चाल पै नाड़ा बज रह्या
बोल रहे बिछुए, दम मारो दम
गलियारा भी...................।

घुँघटे नै जो थोड़ा-थोड़ा सरकावै
सब तिथियाँ का चन्द्रमा नजर आवै
सारा घूँघट खोल दे तो साधु मांगै रम
गलियारा............................।

प्रीत के नशे में चाली डट-डटकै
चालती परी की पोरी पोरी मटकै
एटम भरे जोबन का फोड़ गई बम
गलियारा भी.......................।

टाबर सगले गाम के पीछै पड़ गे
देखते ही युवका के होश उड़ गे
बूढ़े-बूढ़े बैठ गए भर कै चिलम
गलियारा भी.....................।

कूदण लाग्या मन मेरा, बिंध गया तन
लिक्खण बैठ्या खूबसूरती का वरणन
कोरा कागज उड़ गया, टूट गी कलम
गलियारा भी कांप गया, मर गए हम।

-जैमिनी हरियाणवी

Back

सब्स्क्रिप्शन

ताऊ बोल्या

Mhara haryana

हमारी अन्य वेब साइट्स