बाट | हरियाणवी गीत

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 श्रीकृष्ण गोतान मंजर

कोये ना कोये बात सै।
मेरी मायड़ जी हुलसावै॥

खड़ी धूप मैं बाल सँवारूँ-काग मँडेरै बोलै
किसकी याद दुवावै बैरी-कुण आवै जी डोलै
करै क्यूँ उत्पात सै -1

चिडी रेत मैं मलमल न्हावै-फुदकै भरै उडारी
श्याम घटा में बिजली चमकै-चालै परवा प्यारी
आवण नैं बरसात सै -2

रात चाँदनी जब जाकर मैं खटिया पर अलसाई
कदे छुपै कदे लिकडै चन्दा कर रहा आँख मिचाई
लगावै बैरी घात सै -3

मेरी हथेली पडी खुजावै आवैगा मनीयाडर
बढ़िया सी पहरूँ मैं साडी लग्या सुनहरी बाडर
गठीला मेरा गात सै - 4

अंग अंग फड़के सै मेरा-रात सावणी आई
घरआला छुट्टी आवण नैं-जब घालैगा भाई,
होवण नैं मुलाकात सै -5

पीहर मैं जी लागै कोन्या -बालम याद सतावै
मरया डाकिया कई दिनां सैं चिट्ठी भी ना ल्यावै
उचाटी दिन रात सै -6

बिल्ली मेरी कार काटगी ना जाऊँ मैं पाणी
सिरीकिशन जी चालै मेरा ल्यादे न गुड़धाणी
मन्नै वो बूरा भात सै -7

- श्रीकृष्ण गोतान 'मंज़र'

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