मोबाइल प लगा रहै, दिनभर करै चैबोळ।
काम कदे करता नहीं, सै बेट्टा बंगलोळ॥
इतना सब कुछ लिख गए, दादा लखमीचंद।
'रोहित' लिक्खू बोल के, बचा कूंण सा छंद॥
देसी घी का नाम तो, भूल गए इब लोग।
इस पीढ़ी नै लागरे, पिज़ा-केक के रोग॥
गामा मैं बी ना दिखैं, कित्ते कोय चौपाळ।
इक-दूजे के फाड़ते, दिक्खते सारे बाळ॥
लाज-शरम की चिडीया, उड़गी बाब्बू दूर ।
वो भी तो लाचार सै, हम बी सै मजबूर॥
सारे एंडी पाक रे, कोई रया न घाट।
बेटे अपने बाप की, करैं खड़ी इब खाट॥
- रोहित कुमार 'हैप्पी' |