चाल-चलण के घटिया देखे बड़े-बड़े बड़बोल्ले लोग, भारी भरकम दिक्खण आले थे भित्तर तै पोल्ले लोग।
जीवन भर तो खूब सताया खूब करया मेरा अपमान, अरथी पै जिब ले कै चाल्लै 'बड़ा भला था' बोल्ले लोग।
रामायण मै न्यू फरमै गे तुलसी दास करम की महमा, इन्दर का सिंहासन डोल्या जिब आस्सण तै डोल्ले लोग।
कथनी अर करणी का अंतर पाया पैसंग और धड़े का, दुनिया नै हम नाप्पे तोल्ले हम नै नाप्पे तोल्ले लोग।
सबतै भारी एक अचम्भा इस दुनिया मैं हमनै देख्या, उसनै लोग्गां का दम घोट्या जिसकै पंखा झोल्लैं लोग।
सिर मुंडवाया ओले पडगे पता नहीं पाट्या पगड़ी का; 'कंवल' ओढ़ ले टोपी सिर पै मारैंगे इब ठोल्ले लोग।
-कंवल हरियाणवी
साभार - यात्रा शब्दों की साहित्य साभा कैथल |