गेल चलुंगी,

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 चन्दरलाल

गेल चलुंगी, गेल चलुंगी, गेल चलुंगी
गेल चलुंगी, गेल चलुंगी, गेल चलुंगी

जी लगता ना तेरे बिना
मैं तो मर ली तेरे बिना
मैं गेल चलुंगी ...

जल बिन काई सूनी, बिना हकीम दवाई सून्नी
मरदां बिना लुगाई सून्नी, सून्नी सै छॉत मँडेरे बिना

मैं तो मर ली तेरे बिना, मैं तो मर ली तेरे बिना,
मैं गेल चलुंगी ...

बादल बिन घनघोर घटे ना, बणी में एकला मोर रहै ना
चन्दा बिना चकोर रहै ना, चोर रहै ना अंधेरे बिना

मैं तो मर ली तेरे बिना, मैं तो मर ली तेरे बिना,
गेल चलुंगी, गेल चलुंगी, गेल चलुंगी
जी लगता ना तेरे बिना ....

'चन्दरलाल' प्रेम हटे ना
तेरी मेरी जोड़ी अलग पटै ना, तेरे बिना मेरी रैन कटै ना
शाम रहै ना सबेरे बिना मैं तो मरली तेरे बिना
जी लगता ना तेरे बिना......

- चन्दरलाल

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हरियाणवी ग़ज़ल गायन लगभग न के बराबर कहा जा सकता है, इस क्षेत्र में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के श्री अनूप लाठर ने विश्वविद्यालय की छात्रा सोनिया चौहान के गायन के माध्यम से अनुपम प्रयोग किया है। आप कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की इस छात्रा की हरियाणवी ग़ज़ल सुनकर अपनी टिप्पणी अवश्य करें।

उपर्युक्त रचना छंद की दृष्टि से ग़ज़ल की श्रेणी में नहीं आ सकती किंतु इसकी प्रस्तुति पूर्णतया रागात्मक व लहज़ा ग़ज़ल का ही है। नि:संदेह श्री राठी का यह प्रयोग अपने आप में अनुपम है। इस तरह का लहज़ा हरियाणवी को एक नई दशा दे सकता है।

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