चल हाल रै उठ कै चाल...

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 रोहित कुमार 'हैप्पी'

चल हाल रै उठ कै चाल बड़ी सै दूर रै जाणा
उडै चाहे धूल
सै मंजल दूर
नहीं पर सै घबराणा
चल हाल रै उठ कै चाल बड़ी सै दूर रै जाणा

ना गौरी रूठ
ज्यागा दिल टूट
पडैगा फेर पछताणा
चल हाल रै उठ कै चाल बड़ी सै दूर रै जाणा

राम तै डरले
पुन्न कुछ करले
छोड़ कै सब कुछ जाणा
चल हाल रै उठ कै चाल बड़ी सै दूर रै जाणा

यां ऊंचे महल
या तेरे बैल, ना इतना टहल
सै किसनै के ले जाणा
चल हाल रै उठ कै चाल बड़ी सै दूर रै जाणा

बोल ना झूठ
राम जै रूठ
झूठ का नहीं ठिकाणा
चल हाल रै उठ कै चाल बड़ी सै दूर रै जाणा

तैं घर नै चाल
या संकट टाल
गॉल मैं के बतलाणा
चल हाल रै उठ कै चाल बड़ी सै दूर रै जाणा

मैं खाल्यूं रूक्खी
के रै ल्यू भूक्खी
पाप का के सै खाणा
चल हाल रै उठ कै चाल बड़ी सै दूर रै जाणा

                         - रोहित कुमार 'हैप्पी'
                            न्यूज़ीलैंड

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