बुढ़ापा बैरी आग्या इब यो, रही वा जकड़ कोन्या। छाती तान के चाला करता, रही वा अकड़ कोन्या।।
जवानी टेम यो खेत म्हं हाली, रहया था पूरे रंग म्हं, आंदी रोटी दोपहर कै म्हं, खाया ताई के बैठ संग म्ह, सूखा पेड़ की ढाला यो इब, रही वा लकड़ कोन्या। छाती तान के चाला करता, रही वा अकड़ कोन्या।।
बेटां नै घर तै काढ दिया, लेग्ये जमीन धोखे म्हं, हरा-भरा घर उजड़गा, बिन पाणी के सोके म्हं, करड़ा घाम गेर दिया रै, रहा वा इब झड़ कोन्या छाती तान के चाला करता, रही वा अकड़ कोन्या।।
आज का बख्त इतना करड़ा कर दिये लाचार तनै, बुढापा की मार इसी मारदी, कर दिये बीमार तनै, रंग रूप सब बदल दिया, रही वा धड कोन्या छाती तान के चाला करता, रही वा अकड़ कोन्या।।
कह संदीप कंवल भुरटाणे आला, बूढां नै ना सताईयो रै, अपणे मात-पिता की सेवा करियो, दूध ना लज्जाईयो रै धूजण लागै हाथ मेरे इब, रही वा पकड़ कोन्या। छाती तान के चाला करता, रही वा अकड़ कोन्या।।
- संदीप कंवल भुरटाना |