नारी सौंदर्य

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 विरेन सांवङिया

कोमल बदनी, रात रजनी वा चालै चाल बच्छेरी के सी
भेष दमकता, रूप चमकता ऊठै लहर लच्छेरी के सी
रंग हरे मै गौरा गात जणू पङा दूब पै पाला
मुखङा दमक दामनी सा जणू कर रा चाँद ऊजाला
जोबन ऊमङै घटा की ढाला जणूँ पुष्प सुगंधी आला
रूप हुस्न के लागै झोके व करै ज्यान का गाला
चम-2 चम-2 चमके लागैं जैसे माता बैठी बेरी के सी
कोमल बदनी, रात रजनी वा............

कदे चुबार तो कदे गलीयार फिरती भागी भागी
दे कै झोल्ली मार कै बोल्ली वा छत पै आ गिरकागी
घुम घाम कै ओली सोली मेरे स्याहमी आगी
दो नैना के तीर चले जब हँस कै नै शरमागी
होंठ रसमली गात मखमली जैसे फूलाँ आली ढेरी के सी
कोमल बदनी, रात रजनी वा...........

कुछ दिन तक नू टोहते-2 मेरे घर तक भी आली
अणजाणे म्हं करै नादानी थी उमर की बाली
ढूँगे उपर चोटी लटकै जैसे झूकी फूल की डाली
नैना त मारी चोट ईसी जणूँ चालै रफल दुनाली
छोटी उम्र मै ज्ञान घणा करती बात बडेरी के सी
कोमल बदनी, रात रजनी वा...........

कर रूप त्रिया घणा ए पीर्या जब मिलण मेरे तै आई
भरकै कोली पकङ कै गौरी, मनै हांगा लाकै ठाई
फेर शर्म सी खोली कुछ ना बोली जङ मै ला बिठाई
मन्दी मन्दी बोलकै बोली वा मुंह फेर शरमाई
रास रचनी, झुकरी सजनी लागै गात मन्डेरी के सी
देख 'सांवङीया' हुया बावला छाई बदन म्हं अन्धेरी के सी

- विरेन सांवङिया

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