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रोहित कुमार 'हैप्पी'
रोहित कुमार 'हैप्पी' न्यूज़ीलैंड में न्यू मीडिया के माध्यम से हरियाणवी भाषा, लेखन व साहित्य के प्रचार-प्रसार हेतु प्रयासरत हैं। रोहित मैस्सी यूनिवर्सिटी, न्यूज़ीलैंड से पत्रकारिता में प्रशिक्षित हैं व इसके अतिरिक्त उन्होंने न्यूज़ीलैंड में इंवेस्टिगेटिव सर्विसिस, ग्राफिक्स व वेब डिवेलपमैंट में भी प्रशिक्षण लिया।
आप मूलत: कैथल (हरियाणा) से सम्बंध रखते हैं और आप कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर हैं। हरियाणवी हिंदी लघु-कथा की शुरुआत आपने 1986-87 में की थी जब आपकी हरियाणवी लघु-कथा, 'सफर' दैनिक ट्रिब्यून' में प्रकाशित हुई थी। आप हरियाणवी कविता, ग़ज़ल, और लघु-कथा विधाओं में सृजन करते हैं।
रोहित न्यूज़ीलैंड से प्रकाशित इंटरनेट पर विश्व की पहली हिंदी पत्रिका, 'भारत-दर्शन' का संपादन व प्रकाशन करते हैं व निरंतर हिंदी-कर्म में अग्रसर हैं। यह पत्रिका 1996 से इंटरनेट पर प्रकाशित हो रही है। वर्तमान में रोहित कुमार 'हैप्पी' 'हरियाणवी' को विश्वमंच पर स्थापित करने के लिए अग्रसर हैं। 'म्हारा-हरियाणा' अपनी मातृ-भूमि के लिए कुछ करने का एक सृजनात्मक प्रयास है।
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हरियाणवी भाषा
हरियाणवी (हरयाणवी) भाषा मूलत: हिंदी की ही एक बोली है और यह हरियाणा की मूल बोली है। हरियाणवी के अधिकतर शब्द ब्रज-भाषा से मिलते-जुलते हैं।
यूं तो हरियाणवी में अनेक उच्चारण (लहज़े) प्रचलित है किंतु अधिकतर इन्हे उत्तरी हरियाणवी व दक्षिणी हरियाणवी में वर्गीकृत किया जाता है। एक ही बात को हरियाणवी में अनेक लहज़ों में कहा जा सकता है। उदाहरणार्थ यहां, 'कहां जा रहे हो?' को विभिन्न हरियाणवी लहज़ों में अभिव्यक्त किया जा रहा है:
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सफर
"बापू पांच कोस पैदल चलना पड़ै स्कूल जाण खातर। एक सैकल दवा दे।"
'बेटे इबकी साढियां मैं जरूर दवाऊंगा।' हरिया अपणे छोरे नै विश्वास दवाण लग रया था। छोरा भी चुप्पी साध गया। मणे-मन हरिया हिसाब लाण लगया। फसल उठेगी आठ हजार की। तीन हजार तो महाजन की उधार चुकारणी अ, अर 4500 देणे अ जमीदार के, गुड्डी के ब्याह खातर पकड़े थे। बाकी बचे कुल पांच सौ! सामणी तक की फसल तक पांच सौ भी कम पड़ेगें। सैकल कड़ै तै आवेगी? चलो सामणी मैं देक्खी ज्यागी।
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देसी गाय की नस्लें
ऊँचे स्कंध, झूलता गलावलंब और पीठ पर सूर्यकेतु स्नायु देसी नसल की पहचान है।
देसी गाय की नस्लों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
- दुधारू नस्ल--साहिवाल, गीर, थारपकर, लाल सिंधी
- दुधारू एवं जुताई वाली नस्ल--ओन्गोले, हरियाणा, कांकरेज, देओनी
- केवल जुताई वाली नस्ल--अमृतमहल, हल्लीकर, खिल्लार
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दिन कद आवेंगें
"मैं थारे गाम की सड़कां पक्की करवा दयूंगा, अर नवे नलके लगवा दूंगा। मै पूरी कोशश करूंगा गाम मै एक हाई स्कूल खलवाण की।"
नेता जी भाषण देण लगरे थे, इलक्शना के दिन थे। वा टैम ग्या तो फेर नेता जी कड़ै? अर नलके अर सड़का किसकी?
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नवी खबर
मैं चा आळे की दुकान पर बैठया चा की चुस्की मारदे-मारदे, अखबार पढण लगरया था। मेरी जड़ मै बेठया एक अनपढ़ सा बुजर्ग पूछण लगया, "रै बेट्टा सुणा कोई नवी खबर?"
"देश भर में अराजकता, दिल्ली में महिलाएं असुरक्षित, एक मंत्री पर घपले का आरोप, एक नव वधू दहेज की भेंट, एक खिलाड़ी मैच फिक्सिंग में गिरफ्तार......।
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या दुनिया
एक ब एक बूढ़ा सा माणस अर उसका छोरा दूसरे गाम जाण लागरे थे। सवारी वास्तै एक खच्चर ह था। दोनो खच्चर पै सवार होकै चाल पड़े। रास्ते मैं कुछ लोग देख कै बोल्ले, "रै माड़ा खच्चर अर दो-दो सवारी। हे राम, जानवर की जान की तो कोई कीमत नहीं समझदे लोग।"
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हरियाणवी दोहे
- रोहित कुमार 'हैप्पी'
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हरियाणे का छौरा देख
हरियाणे का छौरा देख
लाम्बा, चौड़ा गौरा देख
...........हरियाणे का छौरा देख!
दूध-दहीं खा गात बणावै
खाज्या गुड़ का बौरा देख
...........हरियाणे का छौरा देख!
जो दिल मैं आज्या कह देगा
मुँह का बिल्कुल कौरा देख
...........हरियाणे का छौरा देख!
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साजण तो परदेस बसै
साजण तो परदेस बसै मैं सुरखी, बिंदी के लाऊं
सामण बी इब सुहावै ना, मैं झूला झूलण के जाऊं
नणदी बेशक सै प्यार करै, सासू बी कम ना लाड करै
बिन तेरे पर सब सुन्ना सै- मैं के ओढू, मैं के पाऊं
मन थमै ना इब थमाए बी, दिल लगै ना इब लगाए बी
कद आवैगा न्यू बतलादे, कदे बिरह मै ना मैं जर जाऊं
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आग्या मिल गय्या तन्नैं बेल | हरियाणवी ग़ज़ल
आग्या मिल गय्या तन्नैं बेल
लिकड़ चुकी सै कदकी रेल
जिब चावै आजाद घूम तौं
किसनै कर राखी सै जेल
जख्मां पै या नूण लगाकै
दुनिया देख्या करती खेल
सीदा-सादा कोई थय्या जै
कोल्हू मैं बस उसनै पेल
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