ओ मेरी महबूबा | हास्य कविता (काव्य)    Print this  
Author:जैमिनी हरियाणवी | Jaimini Hariyanavi

ओ मेरी महबूबा, महबूबा-महबूबा
तू मन्नै ले डूबी, मैं तन्नै ले डूब्या।

मैं समझ गया तनै हिरणी,
फिर पीछा कर लिया तेरा, हाय करड़ाई का फेरा।
तू निकली मगर शेरणी, तनै खून पी लिया मेरा।
ओ मेरी महबूबा महबूबा
तू कर री ही-हू-हा, मैं कर बै-बू-बा।

कदे खेत में, कदे पणघट पै,
तनै खूब दिखाये जलवे, गामां में हो गे बलवे।
मेरे व्यर्थ में गोडे टूटे, जूतां के घिस गे तलवे।
ओर मेरी महबूबा, महबूबा-महबूबा
तू मेरे तै ऊबी, मैं तेरे तै ऊब्या।

कोय हो जो तनै पकड़ कै,
ब्याह मेरे तै करवा दे, म्हारी जोड़ी तुरत मिला दे।
मेरी गुस्सा भरी जवानी, तनै पूरा मजा चखा दे।
ओ मेरी महबूबा, महबूबा-महबूबा
फिर लुटै तेरी नगरी और लुटै मेरा सूबा।
ओ मेरी महबूबा.........................।

- जैमिनी हरियाणवी

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