बाजरे की रोटी (काव्य)    Print this  
Author:रोहित कुमार 'हैप्पी'

बाजरे की रोटी ना थ्यावै कदै साग
हो गै परदेसी जणूं फूट्टे म्हारे भाग

सुणती कदे ना इब पायल की छम-छम
सुणै आड़ै रागणी अर्र ना कोए राग

आई तीज आड़ै जिब उडी ना पतंगां
होली, दीवाली ना खेल्लै कोई फाग

कोयल की कूं-कूं ना सुणती कदे बी
प्रदेसां मैं 'रोहित' कड़ै आंबां के बाग

-रोहित कुमार 'हैप्पी'
 न्यूज़ीलैंड

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